क्या आपने कभी गौर किया है कि कोई शेयर अचानक गिरते-गिरते थम क्यों जाता है? या फिर बढ़ते-बढ़ते जैसे किसी अदृश्य दीवार से टकराकर लौट क्यों आता है?
इस रहस्य की चाबी छुपी होती है – सपोर्ट और रेजिस्टेंस में।
शेयर बाजार सिर्फ आंकड़ों और चार्ट्स का खेल नहीं है। यह भावनाओं, उम्मीदों और डर का मेल है। और इन्हीं भावनाओं से बनते हैं कुछ खास स्तर – जिन्हें हम सपोर्ट और रेजिस्टेंस कहते हैं।
🌿 सपोर्ट क्या है? – जब बाजार थमता है गिरने से पहले
कल्पना कीजिए कि कोई शेयर लगातार गिर रहा है। निवेशकों का डर बढ़ रहा है। लेकिन तभी, एक स्तर ऐसा आता है जहां कीमत थम जाती है। लोग सोचते हैं – “अब और नहीं गिरेगा, ये दाम वाकई आकर्षक है।” और वहां से खरीदारी शुरू हो जाती है।
वो खास बिंदु सपोर्ट कहलाता है –
एक ऐसा स्तर, जहां बाजार को गिरने से संभाल लिया जाता है।
यह ठीक वैसा है, जैसे जिंदगी की मुश्किलों में कोई आपको थाम ले और कहे – “अब और नहीं गिरने दूंगा।”
रेजिस्टेंस क्या है? – जब बाजार चढ़ते हुए थकने लगता है
दूसरी ओर, जब किसी शेयर की कीमत तेजी से बढ़ती है तो एक समय ऐसा आता है जब लोग डरने लगते हैं – “अब ये बहुत महंगा हो गया है।” और वे बेचने लगते हैं।
यही वह स्तर होता है जहां कीमत रुक जाती है और अक्सर वापस नीचे आने लगती है। यही है रेजिस्टेंस।
रेजिस्टेंस वो छत है, जिसके ऊपर बाजार तब तक नहीं जा पाता जब तक उसके पास ज़्यादा आत्मविश्वास न हो।
सपोर्ट और रेजिस्टेंस कैसे बनते हैं?
मानव भावनाएं और मनोविज्ञान:
हर निवेशक की भावना होती है – सस्ता में खरीदो, महंगा में बेचो। यही भावना बार-बार उन्हीं स्तरों को मजबूत कर देती है।
चार्ट्स पर इतिहास:
अगर किसी स्तर पर कीमतें पहले भी रुक चुकी हैं, तो अगली बार भी वहीं थमने की संभावना होती है।
मनोवैज्ञानिक नंबर:
₹100, ₹500, ₹1000 जैसे नंबर खास होते हैं। इन पर लोग खास ध्यान देते हैं – इसलिए ये स्तर अक्सर सपोर्ट या रेजिस्टेंस बन जाते हैं।
ट्रेंड लाइन्स और मूविंग एवरेज:
ये तकनीकी उपकरण होते हुए भी इंसानों की आदतों को दर्शाते हैं। जैसे 50-दिन का एवरेज – कई लोग इसे एक आधार मानते हैं।
सपोर्ट और रेजिस्टेंस कैसे मदद करते हैं?
1. सही समय पर खरीदना और बेचना
अगर आप जानते हैं कि कोई शेयर सपोर्ट के पास है, तो शायद यह खरीदने का सही मौका हो सकता है।
और अगर वह रेजिस्टेंस के पास है, तो शायद बेचने का समय।
2. जोखिम से सुरक्षा
सपोर्ट से थोड़ा नीचे स्टॉप लॉस लगाने से नुकसान सीमित रह सकता है।
रेजिस्टेंस से थोड़ा ऊपर स्टॉप लॉस लगाने से फंसने की संभावना घटती है।
3. मूल्य का मूल्यांकन
सपोर्ट पर शेयर सस्ता माना जा सकता है।
रेजिस्टेंस पर वह महंगा लगने लगता है।
🧨 लेकिन क्या ये स्तर टूटते नहीं?
टूटते हैं। और जब टूटते हैं, तो बाजार में तूफान आ सकता है।
1. जबरदस्त डिमांड या सप्लाई
बहुत ज़्यादा खरीदारी या बिक्री इन स्तरों को पार करवा सकती है।
2. बड़ी खबरें या इवेंट्स
कंपनी के नतीजे, सरकार की नीतियां – इनका असर इतना गहरा होता है कि सपोर्ट और रेजिस्टेंस जैसे स्तर भी टिक नहीं पाते।
3. बाजार की भावना
डर और उम्मीद – यही बाजार को चलाते हैं। अगर लोगों को यकीन हो जाए कि अब रास्ता साफ है, तो रेजिस्टेंस टूट सकता है।
और अगर डर बढ़ जाए, तो सपोर्ट भी काम नहीं करता।
📌 एक बात याद रखें
सपोर्ट और रेजिस्टेंस पत्थर पर लिखी रेखाएं नहीं हैं। ये भावनाओं से बने दर्पण हैं, जो बाजार का मन दिखाते हैं।
निष्कर्ष: सपोर्ट और रेजिस्टेंस – एक अदृश्य मार्गदर्शक
सपोर्ट और रेजिस्टेंस सिर्फ तकनीकी शब्द नहीं हैं। ये वो भावनात्मक पड़ाव हैं, जहां निवेशक अपने फैसले लेते हैं – कभी डर से, कभी भरोसे से।
अगर आप इन स्तरों को समझना शुरू कर दें, तो आप बाजार को सिर्फ आंकड़ों की नजर से नहीं, उसकी धड़कन की तरह महसूस करने लगेंगे। और तब आप एक बेहतर, अधिक आत्मविश्वासी निवेशक बन जाएंगे।
"सपोर्ट और रेजिस्टेंस, शेयर बाजार के वो दो पड़ाव हैं — जहां डर और उम्मीदें एक-दूसरे को टटोलती हैं। अगर आपने इन्हें समझ लिया, तो बाजार की चाल आपकी साथी बन जाएगी।"